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Showing posts from July, 2010

पर्यावरण : बिहार के दोन को धुंआ रहित करने की तैयारी

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लंबे समय से दुधिया रोशनी को तरस रहे बिहार के पश्चिम चम्पारण जिला अंतर्गत रामनगर प्रखंड के वनवर्ती दोन इलाके के में अब जहरीला धुंआ नहीं होगा और लोगों को दुधिया रोशनी भी मिलेगी। इस धुंआ रहित रोशनी का जुगाड़ किया वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में काम कर रही संस्था वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया और दिल्ली की स्वयं सेवी संस्था टेरी ने। उक्त योजना के तहत फिलहाल खैरहनी व मजुराहां दो गांवों का चयन किया गया है। इन गांवों में वास करनेवाले करीब ढाई सौ परिवारों को सोलर लैंप देने की योजना है। वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया के सहायक प्रबंधक समीर कुमार सिन्हा बताते हैं कि ग्रामीणों को सोलर लैंप देने के पीछे मूल उद्देश्य यह है कि गांव के कुछ लोगों को रोजगार मिले, जंगल से सटे इस इलाके में केरोसिन से जलनेवाले दीपक के स्मोक से प्रदूषण नहीं फैले और ब्राइट लाइट में लोगों की सुरक्षा भी वन्य जीव प्राणियों से हो सके। यहीं नहीं सबसे अहम बात है कि विकास के मामले में पिछड़े इस इलाके में लोगों को रात में अपने बच्चों को पढ़ाने का बेहतर अवसर मिले। समीर के मुताबिक सोलर सिस्टम के लिए टेरी ने जो प्रावधान दिया है, उसके अनुसार गां

वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के गांवों में होती है सर्वाधिक लकड़ी की खपत

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देश के 75 प्रतिशत लोग जलावन के रूप में लकड़ी पर आश्रित है। जबकि बिहार की इकलौती व्याघ्र परियोजना वाल्मीकि टाइगर रिजर्व से सटे गांवों में यह आंकड़ा 81 प्रतिशत है। टाइगर रिजर्व के मध्य में अवस्थित दोन क्षेत्र में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक इस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन ईंधन के लिए 1.6 किलोग्राम जलावन की खपत करता है। औसतन यहां के हर घर के लोग सप्ताह में 12 घंटे जलावन चुनने में लगे रहते हैं। वैसे जलावन चुनने में महिलाओं की संख्या अधिक है। फिर भी 40 फीसदी घरों के बच्चे जंगलों में जलावन चुनने को मजबूर हैं। वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया के सहायक प्रबंधक डा. समीर कुमार सिन्हा द्वारा किए गए शोध के आंकड़े दर्शाते है कि देश के अन्य हिस्सों के जंगलों के समीप बसे गांवों में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष औसतन 424 किलोग्राम लकड़ी का उपयोग होता है। जबकि वाल्मीकि टाईगर रिजर्व से सटे गांवों में यह आंकड़ा प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 566 किलोग्राम है। वाल्मीकि टाईगर रिजर्व से सटे दोन क्षेत्र के लगभग सौ घरों में 10 से 15 दिनों के दौरान जुटाए गए आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में जलावन के रूप में लकड़ी