वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के गांवों में होती है सर्वाधिक लकड़ी की खपत

देश के 75 प्रतिशत लोग जलावन के रूप में लकड़ी पर आश्रित है। जबकि बिहार की इकलौती व्याघ्र परियोजना वाल्मीकि टाइगर रिजर्व से सटे गांवों में यह आंकड़ा 81 प्रतिशत है। टाइगर रिजर्व के मध्य में अवस्थित दोन क्षेत्र में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक इस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन ईंधन के लिए 1.6 किलोग्राम जलावन की खपत करता है। औसतन यहां के हर घर के लोग सप्ताह में 12 घंटे जलावन चुनने में लगे रहते हैं। वैसे जलावन चुनने में महिलाओं की संख्या अधिक है। फिर भी 40 फीसदी घरों के बच्चे जंगलों में जलावन चुनने को मजबूर हैं। वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया के सहायक प्रबंधक डा. समीर कुमार सिन्हा द्वारा किए गए शोध के आंकड़े दर्शाते है कि देश के अन्य हिस्सों के जंगलों के समीप बसे गांवों में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष औसतन 424 किलोग्राम लकड़ी का उपयोग होता है। जबकि वाल्मीकि टाईगर रिजर्व से सटे गांवों में यह आंकड़ा प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 566 किलोग्राम है। वाल्मीकि टाईगर रिजर्व से सटे दोन क्षेत्र के लगभग सौ घरों में 10 से 15 दिनों के दौरान जुटाए गए आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में जलावन के रूप में लकड़ी का उपयोग देश के अन्य हिस्सों की अपेक्षा ज्यादा होता है। यहां जलावन के रूप में मुख्य रूप से कर्मा, बांझी, पियाल, शीशम, बोदड़ा, पताय आदि प्रजातियों की लकडिय़ां जलावन के रूप में प्रयुक्त होती हैं। लकड़ी की अधिक खपत के बारे में डा. सिन्हा बताते है कि आसानी से लकड़ी की उपलब्धता उसके दुरूपयोग मुख्य कारण है। उनका मानना है कि जलावन की अधिक खपत से न सिर्फ प्राकृतिक जंगलों के उपर अत्यधिक दबाव पड़ता है बल्कि अधिक मात्रा में विषैले गैसों का भी उत्सर्जन होता है। यह हमारे देश के मौसम व स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं है। कुल मिलाकर जलावन के रूप में लकड़ी की यह खपत भविष्य में अपना भयानक असर दिखाएगी।

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