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Showing posts from June, 2010

यह त्याग है या लिप्सा...

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बिहार में इन दिनों राजनीतिक भूचाल आया है। यह भूचाल भाजपा व जदयू के बीच का है। बिल्कुल सांप-छछूंदर जैसा। सूबे के मुखिया नीतीश कुमार का मिजाज इन दिनों बदला-बदला सा है। दोस्ती में दरार पड़ी है। सारा बवाल सिर्फ एक विज्ञापन को लेकर है। वह भी सत्ता के भागीदार दल के ही नेता गुजरात के मुख्यमंत्री के साथ हाथ में हाथ डाले तस्वीर को लेकर। विज्ञापन छपा। नीतीश जी ने पहले तो सहयोगी दल भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों के लिए आयोजित भोज को स्थगित किया। विज्ञापन छपने को लेकर कानूनी कार्रवाई करने की चेतावनी दी और बाद में गुजरात सरकार से कोसी आपदा के समय आई राहत की राशि वापस कर दी। राज्य की जनता स्तब्ध है कि आखिर अपने इस राज्य में हो क्या रहा है। सत्ता के गलियारे में सीन साफ हो चुका है कि सारा मामला अल्पसंख्यक वोट को लेकर है। अब मामला आमने-सामने की जंग में तब्दील होता नजर आ रहा है। नीतीश जी की विश्वास यात्रा से उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने किनारा क्या किया उन्होंने राजधानी के पटना सिटी (राजग संयोजक नंदकिशोर यादव के क्षेत्र) में आयोजित कार्यक्रम को रद कर दिया। वजह मोदी जी ने उनके एक कार्यक्

जरा सोचिए एक दिन जाना है आखर खाट पर ही...

आखर खाट काली रात। चहुं ओर टहलता मेरा यार। मेरे यार की दीवानगी देखो। मरने के बाद शव से निभाया प्यार।                                                                           आखर खाट को जरा गंभीरता से लेने की जरूरत है। यहीं अंतिम सत्य है। इसी खाट तक जाकर आदमी बस आदमी, एक शरीर के रुप में शेष रह जाता है। कोई छोटा बड़ा नहीं होता। सभी बराबर हो जाते हैं। हमारे पड़ोसी, हमारे लोग जहां भी होते हैं जब वक्त हमें आखर खाट पर ले जाता है तो सिर के बल भाग कर आते है। रोते है, अफशोष करते हैं। बड़ा बेहतर साथी था आज आखिर उसी खाट पर जा लेटा, जहां से अब बस उसकी याद ली जा सकती उसके लिए दुआ की जा सकती है। वह भी उसकी आत्मा की शांति के लिए। आखर खाट पर जब आदमी बिना आत्मा (मृत) स्थिति में सोता है, तो देखिए कैसे-कैसे समाज उसके साथ व्यवहार करता है। कोई आता है तो उस आखर खाट पर पड़े व्यक्ति या महिला को भूखी निगाह से देखता है। यह भूख आदमी-आदमी पर निर्भर करती है। जो अपने जीवन साथी से बिछड़ा होता है, उसके लिए दिन और चांदनी रात भी काली हो जाती है। सामने वाला प्रेमी अथवा अपनी प्रेयसी के बिछडऩे की आग में ऐसा जलता है कि

बिहार में मोदी पर बवाल : एक तस्वीर क्या छपी निवाला भी न मिला...

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आज सुबह (13 जून) का अखबार पढ़ रहा था। अखबार के टाप पर मिली राजनीति। राजनीति बिहार की और उसमें गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की भरपूर चर्चा। वह चर्चा भी महज एक विज्ञापन को लेकर। अखबारों ने इस बाबत जो खबर प्रकाशित की थी, उससे एक बात उभरकर सामने आई की 12 जून के अंक बिहार के अखबारों में एक विज्ञापन छप गया था। विज्ञापन में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक साथ दिखाया गया है। यहीं आकर सारा मामला फंस गया है। मतलब साफ है बिहार में नीतीश भले ही भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन की सरकार चला रहे हैं, लेकिन वे हमेशा से इस फेरे में रहे कि उनकी छवि धर्म निरपेक्ष रहे और कहीं से उनपर अल्पसंख्यक विरोधी होने का ठप्पा नहीं लगे। और भाई नरेन्द्र मोदी जी तो अक्सर इस तरह के मामलों के लिए विवादों में रहे हैं। फिर क्या था नीतीश जी ने विज्ञापन देखा। मीडिया को बुलाया बयान- दिया। अखबारों ने जो उनका बयान पेश किया वह यह था कि विज्ञापन प्रकाशन से पूर्व उनसे अनुमति नहीं ली गई यह गैर कानूनी है। इसके लिए वे कानूनी कार्रवाई करेंगे। कोसी विपदा के समय गुजरात से आई राशि वा

देखिए ना सरकार : बिहार की इस चीनी मिल में आई है जान

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2005 में बिहार के सफर पर एक शख्स निकला था। नाम है दीपक यादव। इस क्रम में ट्रेन से कई देशों का भ्रमण कर चुके दीपक ने बिहार के अभिन्न अंग चम्पारण की हरियाली देखी थी। हरियाली से भरे इस इलाके में लोगों की झोपड़ी, खपरैल घर और लोगों तन पर पड़े कपड़ों को देखा था। उस समय इस युवक को बात का एहसास हुआ था कि तमाम संभावनाएं होने के बावजूद आर्थिक संरचना के अभाव में बिहार और इसके अभिन्न अंग चम्पारण का समग्र विकास नहीं हो पा रहा है। फिर बिहार के संदर्भ में सोचा और यहां इंडस्ट्री लगाने की प्लान में लगे। वजह साफ - एक तो बिहार हरियाली के मामले में पंजाब व अन्य राज्यों से बेहतर है। फिर यहां की जो आबादी है वह भोली है। यहां के लोग मेहनती हैं। फिर दीपक ने यह ठाना कि अहिंसा की प्रयोगस्थली चम्पारण में बिहार और चम्पारण की विकास गाथा लिखी जाएगी। इसके लिए प्लान भी बनाने लगे। इसी बीच दिल्ली में मिल गए तिरुपति सुगर मिल, बगहा के पूर्व मालिक मनोज पोद्दार। मनोज ने दीपक को बताया मिल पूरी तरह से अंतिम सांसे गिन रही है और वे मिल को बेचना चाहते हैं। एक ऐसे हाथ में, जो किसानों के बकाए का भुगतान दे सके और मिल को बेहतर स्थि