जरा सोचिए एक दिन जाना है आखर खाट पर ही...

आखर खाट काली रात।
चहुं ओर टहलता मेरा यार।
मेरे यार की दीवानगी देखो।
मरने के बाद शव से निभाया प्यार।
                                                                          आखर खाट को जरा गंभीरता से लेने की जरूरत है। यहीं अंतिम सत्य है। इसी खाट तक जाकर आदमी बस आदमी, एक शरीर के रुप में शेष रह जाता है। कोई छोटा बड़ा नहीं होता। सभी बराबर हो जाते हैं। हमारे पड़ोसी, हमारे लोग जहां भी होते हैं जब वक्त हमें आखर खाट पर ले जाता है तो सिर के बल भाग कर आते है। रोते है, अफशोष करते हैं। बड़ा बेहतर साथी था आज आखिर उसी खाट पर जा लेटा, जहां से अब बस उसकी याद ली जा सकती उसके लिए दुआ की जा सकती है। वह भी उसकी आत्मा की शांति के लिए। आखर खाट पर जब आदमी बिना आत्मा (मृत) स्थिति में सोता है, तो देखिए कैसे-कैसे समाज उसके साथ व्यवहार करता है। कोई आता है तो उस आखर खाट पर पड़े व्यक्ति या महिला को भूखी निगाह से देखता है। यह भूख आदमी-आदमी पर निर्भर करती है। जो अपने जीवन साथी से बिछड़ा होता है, उसके लिए दिन और चांदनी रात भी काली हो जाती है। सामने वाला प्रेमी अथवा अपनी प्रेयसी के बिछडऩे की आग में ऐसा जलता है कि उसे हर एक बेगाना लगने लगता है और तब कोशिश होती है अपने प्यार के बूत देने की। जो वास्तव में प्यार के मारे होते हैं, वो तो अपने यार के आखर खाट से भी सबक लेते हैं और जीवन में वहीं सबकुछ करते हैं जो उस यार की चाह थी। अपने देश के इतिहास में दर्ज एक (गांधी) परिवार के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। पहले पंडित नेहरू, फिर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया और परिवार के राजकुमार राहुल गांधी। नेहरू, इंदिरा व राजीव के देहावसान के बाद भी इस परिवार ने देश की सेवा को नहीं छोड़ा। परंतु, अभी देश की जो हालत है वह विचित्र है। किसी को इस बात का तनिक भी एहसास नहीं रहा कि अंत में हम सभी को एक न एक दिन उसी आखर खाट पर जाना है और फिर हमारी याद तक कुछ दिनों तक रहेगी और लोग भूल जाएंगे। ऐसे में आखर काट, काली रात, प्यार व उसके निभाने के वायदे को यदि आत्म सात कर लिया जाए तो फिर राजनीति भी बेहतर, समाज भी बेहतर और समाज के लोग भी अच्छे होंगे। एक ऐसे समाज का निर्माण होगा, जो अपने यार के मरने के बाद बस यार के ख्वाब संजोएगा न कि उसके शरीर से गहने नोचेगा और नहीं उसके किए को मिटने देगा। आइए हम सभी इस समाज को एक नई दिशा दें, ताकि हर आदमी को अपनी जिम्मेदारी का एहसास हो और वह समाज के जागरूकता आए और जहां एक दूसरे के बीच अमीर-गरीब का फासला हो वह मिटे और एक ऐसे समाज और यार का निर्माण हो जो मरने के बाद शव के साथ भी प्यार निभाए। ऐसे में हमें एक ऐसे समाजिक संरचना के लिए जंग लडऩी होगी जो समरस हो हर आदमी राजनीति व धन लिप्ता से उपर जाकर समाज को प्रगति की ओर ले जाए।

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