यह त्याग है या लिप्सा...
बिहार में इन दिनों राजनीतिक भूचाल आया है। यह भूचाल भाजपा व जदयू के बीच का है। बिल्कुल सांप-छछूंदर जैसा। सूबे के मुखिया नीतीश कुमार का मिजाज इन दिनों बदला-बदला सा है। दोस्ती में दरार पड़ी है। सारा बवाल सिर्फ एक विज्ञापन को लेकर है। वह भी सत्ता के भागीदार दल के ही नेता गुजरात के मुख्यमंत्री के साथ हाथ में हाथ डाले तस्वीर को लेकर। विज्ञापन छपा। नीतीश जी ने पहले तो सहयोगी दल भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों के लिए आयोजित भोज को स्थगित किया। विज्ञापन छपने को लेकर कानूनी कार्रवाई करने की चेतावनी दी और बाद में गुजरात सरकार से कोसी आपदा के समय आई राहत की राशि वापस कर दी। राज्य की जनता स्तब्ध है कि आखिर अपने इस राज्य में हो क्या रहा है। सत्ता के गलियारे में सीन साफ हो चुका है कि सारा मामला अल्पसंख्यक वोट को लेकर है। अब मामला आमने-सामने की जंग में तब्दील होता नजर आ रहा है। नीतीश जी की विश्वास यात्रा से उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने किनारा क्या किया उन्होंने राजधानी के पटना सिटी (राजग संयोजक नंदकिशोर यादव के क्षेत्र) में आयोजित कार्यक्रम को रद कर दिया। वजह मोदी जी ने उनके एक कार्यक्रम (पालीगंज के सिगोड़ी) में जाने से किनारा कर लिया था। भाजपा के मंत्री गिरिराज सिंह ने यह कह दिया कि मोदी जी को यह काम चार साल पहले कर देना चाहिए था। गिरिराज सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि भाजपा को अलग हो जाना चाहिए। हालांकि दोनों दलों के शीर्ष नेता अभी भी गठबंधन धर्म का पालन करने का दम भर रहे हैं। देखना यह होगा कि भाजपा व जदयू का शीर्ष नेतृत्व क्या निर्णय लेता है। पर इतना तय हो चुका है कि सूबे की जनता को इस बार फैसले सोच समझकर लेने होंगे। खासकर कोसी विपदा में आई राहत राशि को लौटाने के मामले में। भारतीय संस्कृति की एक जमीनी हकीकत यह भी है कि घर आए मेहमान का स्वागत किया जाता है। आपत्ति काल में जो मित्र काम आए उसका एहसान माना जाता है। लेकिन यहां तो सबकुछ अटपटा सा लग रहा है। नीतीश जी भी चुप हैं और मोदी जी भी चुप्पी साधे हुए हैं। वजह गठबंधन धर्म का है। सारी स्थिति राजनीति की बिसात पर बिछी है। फैसला होना शेष है। अब सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि क्या भाजपा इस अपमान को सह पाएगी। क्या नीतीश अपने किए के लिए किसी से माफी मांगने जा रहे हैं। यदि हां तो फिर...! यदि ना तो फिर ...! राजनीति के इस खेल में तो बस वहीं दिख रहा है कि एक बार फिर विकास की राह पर चल पड़े बिहार में राजनीतिक भूचाल आया है और यह भूचाल दोस्ती के बीच का है। कहते हैं कि दोस्ती में जब भी दरार आई है तो परिणाम थोड़े विपरीत हुए हैं। अब देखना यह होगा मीडिया से जो संकेत मिल रहे हैं, उसके अनुसार दोनों सहयोगी दलों के बीच की खटास कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है। ऐसे में कोसी त्रासदी के बाद मिली राहत की राशि लौटाना त्याग है या फिर लिप्सा।
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