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Showing posts from September, 2010

तूफान को आने दो...

तूफान को आने दो। हवा को बहने दो। आग को लगने दो। बस्तियों को जलने दो। बदत्तमीजों को हद पार करने दो। नारी की सजी मांग उजडऩे दो। बेवा को सड़क पर तड़पने दो। बिजली को कड़कने दो, बादल को गरजने दो। बारिश को बरसने दो। नदियों को ऊफनाने दो। जलजला को आने दो। बस्तियों को तबाह होने दो। यहीं तुम हो यहीं मैं हूं। कातिल को मकतूल की कीमत लगाने दो। जलोगे तुम भी, जलूंगा मैं भी। बहोगे तुम भी, बहूंगा मैं भी। तूफान तब भी होगा, जलजला तब भी होगा। देखूंगा मैं भी, देखोगे तुम भी। तो फिर कैसी सोच, काहे की चिंता। तूफान को आने दो, तेज हवा को बहने दो।

काश मैं भी चंदन होता...

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काश मैं भी चंदन होता। सांपों के संग खेलता। फिर भी चंदन होता। मैं जो चंदन होता। पत्थर पे पिस जाता मैं। लोग लगाते माथे। देवों के सिर चढ़ता। खुद पर मैं इठलाता। सांपों के संग रहा मैं। सांपों के संग खेला। सांप रहे लिपटे मुझसे। मैं भी उनमे खोया।। ए सर्प बड़े जहरीले निकले। खूब रहे लिपटे मुझसे। विष छोड़ जलाया तन। मेरा क्या मैं चंदन था। मैने सब विष ग्राह्य किया। फिर भी विषधर न हुआ। मैं जो विषधर बनता। ना लोग लगाते माथे। ना देवों के सिर चढ़ता। काश मैं भी चंदन होता।

इस हंसी का क्या कहना यारों...

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इस हंसी का क्या कहना यारों। खूने जिगर से आए न आए। यार के होठों से हमेशा आती है। इसी दुनियां में अपना भी यार है। तू भी मेरा यार सही। वो भी मेरा यार सही। पर तू हंसता है तो दिखता है। वो भी हंसता है तो दिखता है। पर मैं जो रोता हूं। तेरी यारी की सौ मुझे। मैं रोज सुबह हंसता हूं। सड़क से गुजरता हूं। दुनियां को देखता हूं। मुफलिसी रोती है। अमीरी ताना देती है। बनाती है गरीबी की कोख। कोख से कुदाल वाला लाल। लाल चीरता है धरती का सीना। मरहम की जगह डालता है खाद। तब आती है खूने जिगर से हंसी।