2005 में बिहार के सफर पर एक शख्स निकला था। नाम है दीपक यादव। इस क्रम में ट्रेन से कई देशों का भ्रमण कर चुके दीपक ने बिहार के अभिन्न अंग चम्पारण की हरियाली देखी थी। हरियाली से भरे इस इलाके में लोगों की झोपड़ी, खपरैल घर और लोगों तन पर पड़े कपड़ों को देखा था। उस समय इस युवक को बात का एहसास हुआ था कि तमाम संभावनाएं होने के बावजूद आर्थिक संरचना के अभाव में बिहार और इसके अभिन्न अंग चम्पारण का समग्र विकास नहीं हो पा रहा है। फिर बिहार के संदर्भ में सोचा और यहां इंडस्ट्री लगाने की प्लान में लगे। वजह साफ - एक तो बिहार हरियाली के मामले में पंजाब व अन्य राज्यों से बेहतर है। फिर यहां की जो आबादी है वह भोली है। यहां के लोग मेहनती हैं। फिर दीपक ने यह ठाना कि अहिंसा की प्रयोगस्थली चम्पारण में बिहार और चम्पारण की विकास गाथा लिखी जाएगी। इसके लिए प्लान भी बनाने लगे। इसी बीच दिल्ली में मिल गए तिरुपति सुगर मिल, बगहा के पूर्व मालिक मनोज पोद्दार। मनोज ने दीपक को बताया मिल पूरी तरह से अंतिम सांसे गिन रही है और वे मिल को बेचना चाहते हैं। एक ऐसे हाथ में, जो किसानों के बकाए का भुगतान दे सके और मिल को बेहतर स्थि
भाव अच्छे हैं
ReplyDeleteवीना जी,
ReplyDeleteइस स्नेह के लिए धन्यवाद।