मुझे संवार दो मैं सहारा हूं जमाने भर के लिए
मां । मतलब जन्नत। मतलब सेवकाई के दम पर दुनियां भर में पूजी जानेवाली वह देवी, जिसके नाम से दुनियां चलती हैं। पर आज की चकाचौंध भरी दुनियां में हम यह भूल गए हैं कि आज जो हमारी मां है। वह भी कभी किसी के गर्भ में पली होगी। वह भी किसी की बेटी रही होगी। उसे भी किसी ने पाला होगा। वह बिल्कुल अपनी मां की प्रतिमूर्ति बनी होगी। फिर मां ने बिटिया का ब्याह रचाया होगा और फिर हम जैसे न जाने कितने अपनी मां के लाल हुए। परंतु, उसी मां के लाल होकर हम यह भूल गए और पाप समझ बेटियों को फेंकते गए। आखिर क्यों फेंकी जाती हैं बेटियां। क्या बेटियां पाप हैं। यदि बेटियां पाप हैं तो फिर पुण्य क्या है? आपने तो बस यहीं सुना होगा कि गर्भ में मार दी जाती है। लेकिन मैने अपनी आंख से देखा है। गन्ने के खेत में रोती-बिलखती बेटी को, जिसे चील कौवे नोंच खाने को तैयार थे। वह बेटी अभी मां के गर्भ से निकली ही थी। उसे उसकी मां ने ठीक से देखा नहीं भी होगा और अपने से दूर कर दिया। बात किसी दूसरे जगह की नहीं है। बात उसी चम्पारण की है, जहां से कभी महात्मा गांधी ने लोगों को अहिंसा का फाठ पढ़ाया था। अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंका था। आज व